Buddhadarshan News, New Delhi
आधुनिक भारत में समाज के निचले तबके को मुख्यधारा में लोने के लिए सबसे पहले छत्रपति शिवाजी महाराज के वंशज एवं कोल्हापुर रियासत के राजा शाहूजी महाराज ने आरक्षण लागू की।
17 मार्च 1884 में कोल्हापुर का राजा बनने के बाद शाहू जी महाराज (26 जून 1874-1922) ने देखा कि अछूतों को अस्पताल में भर्ती नहीं किया जाता था। सत्ता संभालते ही उन्होंने शासनादेश जारी किया कि किसी भी अछूत को ससम्मान अस्पताल में भर्ती व इलाज किया जाए और इसका उल्लंघन करने पर कर्मचारी को नौकरी से निकाल देने की सजा तय की गई।
नौकरियों में 50 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था:
शाहू जी ने 16 जुलाई 1901 में अपने शासन की नौकरियों में गैर ब्राह्मण वर्ग के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया। शाहू जी ने चार जातियों ब्राह्मण, शेणवी, प्रभु और पारसी को छोड़कर शेष सभी जातियों के लिए आरक्षण का प्रावधान किया था।
दरबार के 71 अधिकारियों में 60 ब्राह्मण:
सत्ता संभालने पर शाहू जी ने पाया कि उनके दरबार में 71 उच्च पदों में से 60 ब्राह्मण और 11 गैर ब्राह्मण जातियों के लोग कार्य कर रहे हैं । इसी तरह निजी सेवा में 52 में से 45 ब्राह्मण अधिकारी और केवल 7 गैर ब्राह्मण अधिकारी थे। ऐसे में दरबार में पदों पर समाज के सभी तबकों को प्रतिनिधित्व व काम करने का मौका देने के लिए उन्होंने आरक्षण का प्रावधान किया।
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काफी हुआ विरोध:
उस समय शाहूजी महाराज के आरक्षण के फैसले का काफी विरोध हुआ। कई गणमान्य लोगों ने भी इस फैसले की आलोचना की। महाराष्ट्र के एक बड़े नेता ने तो किसानों (कुन्बी– उत्तर प्रदेश में कुर्मी) के बच्चों को शिक्षा देने का पुरजोर विरोध किया।
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दलितों को दिलाया भूमि अधिकार:
शाहूजी महाराज ने 1918 में कानून बनाकर राज्य की एक और पुरानी प्रथा ‘वतनदारी’ का अंत किया और भूमि सुधार लागू कर महारों को भू-स्वामी बनने का हक दिलाया। इस आदेश से महार भाईयों की आर्थिक गुलामी काफी हद तक दूर हो गई।