पाखंडवाद और अंधविश्वास के खिलाफ संतराम बीए ने आजीवन संघर्ष किया
Buddhadarshan News, 14 Feb
भारतीय समाज में फैले रूढ़िवाद, पाखंडवाद और अंधविश्वास जैसी सामाजिक बुराइयों को दूर करने के लिए हमारे महापुरुषों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है, जिनमें संतराम बीए जी का नाम भी प्रमुखता से शामिल है।
संतराम बीए जी का जन्म प्रजापति कुम्हार परिवार में 14 फरवरी 1887 में पंजाब के होशियारपुर के बस्ती गांव में हुआ था। आपने समाज के साथ-साथ देश का भी नाम रौशन किया। जातिविहीन समाज के निर्माण एवं पाखंडवाद के खिलाफ आपने आजीवन संघर्ष किया। आपने 100 से अधिक पुस्तकें लिखी एवं कई पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया।
आपकी प्रारंभिक शिक्षा बजवाड़ा के प्राथमिक स्कूल से और 1909 में लाहौर के गवर्नमेंट कॉलेज से बीए किया। उस जमाने में बीए की शिक्षा ग्रहण करना बहुत बड़ी बात थी। आपने कभी भी अपने सरनेम में जाति का उल्लेख नहीं किया, बल्कि आपने शिक्षा को महत्व दिया।
संतराम बीए जी बचपन से ही समाज सेवा के लिए तत्पर रहते थे। 1922 में परमानंद के साथ मिलकर आपने ‘जाति-पाति तोड़क मंडल’ की स्थापना की। मंडल के प्रधान परमानंद एवं सचिव संतराम जी बने। मंडल के जरिए आपने समाज की बुराइयों पर करारा प्रहार किया। परिणामस्वरूप आपकी लोकप्रियता पंजाब से बाहर अन्य राज्यों में भी बढ़ती गई। अन्य राज्यों में भी मंडल की शाखाएं खोली गईं और सैकड़ों अंतरजातीय विवाह कराए गएं।
संतराम बीए जी ने खुद अपने बच्चों की शादियां जाति-पाति के भेद से ऊपर उठकर किया।
वर्ष 1948 में आपने ऐतिहासिक पुस्तक ‘हमारा समाज’ लिखा। इस पुस्तक के जरिए आपने भारतीय समाज में व्याप्त बुराइयों पर करारा प्रहार किया। आपने ऊर्दू में क्रांति पत्रिका निकाली। इसके अलावा अन्य कई पत्र-पत्रिकाओं का आपने संपादन किया।
31 मई 1988 में यह महापुरुष ने अंतिम सांस ली।
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