Famous poem on the Rajputs of Chittaurgarh
Buddhadarshan News, New Delhi
चितौड़गढ़ की रानी पद्यमावती और अलाउद्दीन खिलजी का प्रसंग यदि आपको याद हो तो
राष्ट्रप्रेम से ओतप्रोत यह कविता वास्तव में हमारे रोंगटे खड़े कर देती है।
रविवार को कश्मीर के उरी सेक्टर में शहीद हुए हमारे 17 जवानों की याद में यह कविता अचानक जुबां पे आ गई।
थाल सजाकर किसे पूजने चले प्रात: ही मतवाले
कहां चले तुम रामनाम का पीतांबर तन पर डाले।
इधर प्रयाग न गंगा सागर, इधर न रामेश्वर काशी,
इधर कहां है तीर्थ तुम्हारा, कहां चले तुम सन्यासी।
चले झुमते मस्ती से क्या तुम अपना पथ आये भूल,
कहां तुम्हारा दीप जलेगा, कहां चढ़ेगा माला-फूल।
मुझे न जाना गंगा सागर, मुझे न रामेश्वर काशी,
तीर्थराज चितौड़ देखने को मेरी आंखें प्यासी।
अपने अटल स्वतंत्र दुर्ग पर सुनकर वैरी की बोली,
निकल पड़ी लेकर तलवारें जहां जवानों की टोली।
जहां आन पर मां बहनों ने जल जला पावन होली,
वीर मंडली गर्वित स्वर में जय मां की जय-जय बोली।
सुंदरियों ने जहां देश हित जौहर व्रत करना सीखा,
स्वतंत्रता के लिए जहां बच्चों ने भी मरना सीखा।
वहीं जा रहा हूं पूजा करने, लेने सतियों की पद धूल,
वहीं हमारा दीप जलेगा, वहीं चढ़ेगा माला, फूल।
जहां पद्ममिनी जौहर व्रत करती चढ़ी चिता की ज्वाला पर,
क्षण भर वही समाधि लगी बैठ इसी मृग छाला पर ।
(श्याम नारायण पाण्डेय द्वारा रचित )