Famous poem of Haldighati
Buddhadarshan News, New Delhi
Famous poem of Haldighati
रण बीच चौकड़ी भर-भर कर,
चेतक बन गया निराला था।
राणाप्रताप के घोड़े से,
पड़ गया हवा का पाला था।
जो तनिक हवा से बाग हिली,
लेकर सवार उड़ जाता था।
राणा की पुतली फिरी नहीं,
तब तक चेतक मुड़ जाता था।
गिरता न कभी चेतक तन पर,
राणाप्रताप का कोड़ा था।
वह दौड़ रहा अरिमस्तक पर,
वह आसमान का घोड़ा था।
था यहीं रहा अब यहाँ नहीं,
वह वहीं रहा था यहाँ नहीं।
थी जगह न कोई जहाँ नहीं,
किस अरिमस्तक पर कहाँ नहीं।
कौशल दिखलाया चालों में ,
उड गया भयानक भालों में।
निर्भिक गया वह ढ़ालों में ,
सरपट दौडा करवालों में ।
बढ़ते नद-सा वह लहर गया,
फिर गया गया फिर ठहर गया।
विकराल वज्रमय बादल-सा,
अरि की सेना पर घहर गया।
भाला गिर गया गिरा निसंग,
हय टापों से खन गया अंग।
बैरी समाज रह गया दंग,
घोड़े का ऐसा देख रंग।
(चेतक की वीरता-श्याम नारायण पाण्डेय द्वारा रचित)
लेखक के बारे में-
श्याम नारायण पाण्डेय (1907-1991) वीर रस के सुविख्यात हिन्दी कवि थे।
वह केवल कवि ही नहीं, बल्कि अपनी ओजस्वी वाणी में वीर रस काव्य के अनन्यतम प्रस्तोता भी थे।
श्याम नारायण पाण्डेय का जन्म ग्राम डुमराँव, मऊ, आजमगढ़ (उत्तर प्रदेश) में हुआ।
आरम्भिक शिक्षा के बाद आप संस्कृत अध्ययन के लिए काशी चले आये।
यहीं रहकर काशी विद्यापीठ से आपने हिन्दी में साहित्याचार्य किया।
डुमराँव में अपने घर पर रहते हुए वर्ष 1991 में 84 वर्ष की आयु में इनका निधन हो गया।
मृत्यु से तीन वर्ष पूर्व आकाशवाणी गोरखपुर में अभिलेखागार हेतु उनकी आवाज में उनके जीवन के संस्मरण रिकार्ड किये गये।
श्याम नारायण पाण्डेय जी ने चार उत्कृष्ट महाकाव्य रचे, जिनमें हल्दीघाटी (काव्य) सर्वाधिक लोकप्रिय और जौहर (काव्य) विशेष चर्चित हुए।
हल्दीघाटी के नाम से विख्यात राजस्थान की इस ऐतिहासिक वीर भूमि के लोकप्रिय नाम पर लिखे गये हल्दीघाटी महाकाव्य पर उनको
उस समय का सर्वश्रेष्ठ सम्मान देव पुरस्कार प्राप्त हुआ था।
अपनी ओजस्वी वाणी के कारण आप कवि सम्मेलन के मंचों पर अत्यधिक लोकप्रिय हुए।
उनकी आवाज मरते दम तक चौरासी वर्ष की आयु में भी वैसी ही कड़कदार और प्रभावशाली बनी रही जैसी युवावस्था में थी।