Buddhadarshan News, New Delhi
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ गोरख प्रसाद मस्ताना की नवीनतम काव्यकृति ‘तथागत’ साहित्य जगत के श्रीभण्डार का नवीनतम रत्न है जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट है, इसमें महात्मा बुद्ध की जीवन कथा पदबद्ध रूप में प्रस्तुत की गई है.
डॉ मस्ताना ने इस कृति को रचने के पीछे की प्रेरणा के बारे में लिखा है –
“मेरा एक उद्देश्य जगत अमिताभ प्रभु को जाने
पहले से भी अधिक आस्था के संग उनको माने”
सरदार भगत सिंह ने कभी कहा था कि बहरों को सुनाने के लिए धमाके की आवश्यकता है. डॉ मस्ताना ने भी सामाजिक जड़ताओं के उच्छेद के उद्देश्य से बुद्ध गाथा का नवगायन आवश्यक माना, इस कृति के उद्देश्य के संबध में उन्होंने लिखा है –
“आज अंधविश्वास बिछाने लगा अनयतम गहरा
हीरा तुच्छ कोयले पर ही लगा हुआ है पहरा”
“दिग्दिगंत में जातिवाद और वंशवाद का नारा
अहंकार नभ चूमे धरती पर धोखे की धरा
ईष्या में रत हृदय हृदय से बरस रहा अंगारा
चिंतातुर मानव है आखिर पाए कहाँ सहारा ?”
“वर्ण व्यवस्था के पीछे सुलगे आग
ब्राहमण ही है श्रेष्ठ यही चहुँदिश में गूंजे राग
श्रूद्र वर्ण है नीच यही कहता है द्विज समाज
जाति जाति का शोर मचाते नहीं तनिक है लाज़।”
उपरोक्त पंक्तियों को किन्ही स्पष्टीकरण की आवश्यकता नहीं है इनके संदर्भ से डॉ मस्ताना की इस काव्यकृति की अभ्यर्थना ही की जा सकती है कि उन्होंने बेहद प्रासंगिक प्रश्नों को बुद्ध के जीवन के जरिये काव्य रूप में विवेचित कर हमारे सामने एक आलोक स्तम्भ किया है.