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पानीपत, टर्निंग प्वाइंट ऑफ इंडियन हिस्ट्री

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March 10, 2019
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Battle of Panipat 1761, turning point of indian history

पानीपत की लड़ाई 1761 ने भारतीय इतिहास बदल दिया

Buddhadarshan News, New Delhi

भारतीय इतिहास में पानीपत ने बार-बार टर्निंग प्वाइंट की भूमिका निभाई है। मध्य काल और उत्तर मध्य काल में हरियाणा के पानीपत में तीन महत्वपूर्ण लड़ाइयां लड़ी गईं और तीनों लड़ाइयों के परिणाम ने भारत का राजनैतिक, सामाजिक और आर्थिक स्वरूप बदलकर रख दिया। पानीपत की पहली लड़ाई 1526 ईस्वी, पानीपत की दूसरी लड़ाई 1556 और पानीपत की तीसरी लड़ाई 1761 में लड़ी गईं। इन तीनों लड़ाइयों का भारतीय राजनीति पर दूरगामी असर पड़ा।

पानीपत की पहली लड़ाई:

यह लड़ाई काबुल के मुगल शासक बाबर और लोदी वंश के अंतिम शासक इब्राहिम लोदी के बीच 21 अप्रैल 1526 को लड़ी गई। इस लड़ाई में भारतीय इतिहास में पहली बार तोपखाने का इस्तेमाल किया गया। ‘बाबरनामा’ के मुताबिक बाबर ने अपने 15 हजार सैनिकों और 24 तोपों के जरिए भारत के सुल्तान इब्राहिम लोदी की एक लाख सेना को परास्त किया। इस लड़ाई में लोदी वंश का शासक इब्राहिम लोदी भी मारा गया। इसके साथ ही भारत में मुगल वंश की स्थापना हुई और अगले 300 सालों तक मुगल सम्राज्य ने भारत में शासन किया।

पानीपत की दूसरी लड़ाई:

पानीपत की पहली लड़ाई के बाद काबुल के शासक बाबर ने भारत में मुगल वंश की स्थापना तो की, लेकिन बाबर के मरने के बाद उसका बेटा हुमायूं लंबे समय तक गद्दी संभाल नहीं सका। सूर वंश के शासक शेरशाह ने हुमायूं को युद्ध में हराकर सत्ता से बेदखल कर दिया। लेकिन शेरशाह की असामयिक मौत के बाद उसके वंशज भारत की गद्दी को ठीक से संभाल नहीं सकें और हुमायूं ने एक बार फिर से भारत पर कब्जा कर लिया, लेकिन हुमायूं की भी अचानक मौत के बाद उनके सेनापति बैरम खां के संरक्षण में 13 वर्षीय अकबर को गद्दी पर बिठाया गया।

यह भी पढ़ें:   सम्राट अशोक ने किया था लुंबिनी ग्राम को 87.5 फीसदी लगान मुक्त

पानीपत की दूसरी लड़ाई 5 नवंबर 1556 को सूर वंश के संस्थापक शेरशाह सूरी के वंशज मुहम्मद आदिलशाह के सेनापति हेमू और मुगल शासक अकबर के बीच लड़ी गई। हेमू ने सूरी वंश के लिए 22 सफल लड़ाइयां लड़ी। लेकिन इस युद्ध में अचानक एक तीर उसकी आंख में लग गई, जिसकी वजह से हेमू जमीन पर गिर कर बेहोश हो गया और उसकी सेना में भगदड़ मच गया। बेहोशी की अवस्था में बैरम खां ने उसका सिर काट दिया। इस युद्ध के बाद अकबर ने अगले 49 सालों तक भारत पर राज किया।

पानीपत की तीसरी लड़ाई:

पानीपत की तीसरी लड़ाई उत्तर मध्यकाल में भारतीय इतिहास को नया मोड़ दिया। मराठा सेनापति सदाशिव राव भाऊ और अफगान शासक अहमदशाह अब्दाली के बीच लड़ी गई इस लड़ाई में मराठों की बुरी तरह से पराजय हुई। एक तरह से इस युद्ध में मराठों की कमर टूट गई। कहा जाता है कि इस लड़ाई में महाराष्ट्र और कर्नाटक के प्रत्येक घर का एक व्यक्ति मारा गया था।

यह भी पढ़ें :   कुछ युद्ध लेकर आए, हम बुद्ध लेकर आए : मोदी

इस लड़ाई से पहले मराठा सम्राज्य दक्षिण भारत के अलावा उत्तर भारत तक फैल गया था। लेकिन इस युद्ध में मिली करारी हार ने भारतीय सत्ता का स्वरूप बदल दिया। ब्रिटेन की ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में तेजी से पांव फैलाना शुरू कर दिया। चूंकि अब भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के बढ़ते प्रभाव को रोकने वाला कोई मजबूत शासक नहीं था। इस ऐतिहासिक लड़ाई के मात्र तीन साल बाद 22 अक्टूबर 1764 बक्सर की लड़ाई में ईस्ट इंडिया कंपनी ने मुगल शासक, अवध के नवाब और बंगाल के नवाब मीर कासिम को बुरी तरह से पराजित की और बंगाल- बिहार सहित उत्तर भारत के अधिकांश हिस्सों पर कब्जा कर लिया।

पानीपत का पौराणिक महत्व:

पानीपत का पौराणिक महत्व भी है। महाभारत काल में पांडवों ने कौरवों से जिन पांच गांवों की मांग की थी, उनमें से एक पानीपत भी था।

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