कांगड़ा स्पेशल: हिमाचल की पांचों शक्तिपीठ के दर्शन
हिमाचल प्रदेश में पांच शक्तिपीठ हैं
Buddhadarshan News, 23 November
हिमाचल प्रदेश में 5 शक्तिपीठ हैं। अगर आप मां ब्रजेश्वरी देवी मंदिर कांगड़ा, मां चिंतपूर्णी मंदिर, मां ज्वालामुखी मंदिर, मां चामुंडा देवी और मां नयना देवी के दर्शन करने का प्लान बना रहे हैं, तो मौजूदा समय सबसे ठीक है। इस मौसम में ज्यादा भीड़ भी नहीं है। नवंबर के महीने में यहां न ज्यादा ठंड है और न ज्यादा गर्मी।
भक्तों की कमी के चलते होटल और टैक्सी के रेट भी ज्यादा महंगे नहीं है। किसी वजह से होटल की ऑनलाइन बुकिंग नहीं कराई है, तो भी आसानी से यहां रूम मिल सकते हैं।
कैसे पहुंचे कांगड़ा:
आप सड़क, रेल या हवाई यात्रा के जरिए सबसे पहले कांगड़ा पहुंच सकते हैं। यहां 3500 से 4000 रुपये में टैक्सी किराये पर मिल जाती है। इसके लिए आपको कांगड़ा बस स्टैंड पहुंचना होगा, जहां टैक्सी चालक मिल जाते हैं। वही आपके बजट के अनुसार होटल भी मुहैया करा देते हैं।
सड़क मार्ग
दिल्ली के कश्मीरी गेट बस अड्डे से हिमाचल पथ परिवहन निगम 3 टाइप की बसें चलाता है। हिमसुता एसी वोल्वो का किराया 1301 रुपये, हिमानी डीलक्स नॉन एसी का किराया 788 रुपये और ऑर्डिनरी बस का किराया 584 रुपये है। परिवहन निगम की वेबसाइट से पहले ही टिकट बुक करा सकते हैं। ये सभी बसें 10 से 11 घंटे में सफर पूरा करती हैं।
रेल मार्ग
कांगड़ा तक सीधा पहुंचने के लिए कोई बड़ी रेलवे लाइन नहीं है। सबसे करीबी रेलवे स्टेशन पठानकोट है। यहां पहुंचकर टैक्सी या बस के जरिए 85 किलोमीटर सफर तय कर कांगड़ा पहुंचा जा सकता है।
वायु मार्ग
कांगड़ा से 7 किलोमीटर दूर गग्गल एयरपोर्ट है। दिल्ली समेत देश के तमाम हिस्सों से यहां फ्लाइट आती हैं। कई बार मौसम खराब होने की वजह से फ्लाइट कैंसल तक हो जाती हैं। ऐसे में, कांगड़ा आने वाले लोग ज्यादातर सड़क मार्ग का प्रयोग करते हैं।
मां ब्रजेश्वरी देवी कांगड़ा
कांगड़ा बस स्टेंड से करीब 2 किलोमीटर दूर मां ब्रजेश्वरी का धाम है। इसे नगरकोट धाम भी कहते हैं। 51 शक्तिपीठों में से एक कांगड़ा में मां सती का दाहिना वक्ष गिरा था। यहां मां की 3 पिंडिया हैं। गर्भगृह में पहली और मुख्य पिंडी मां ब्रजेश्वरी की है। दूसरी भद्रकाली और तीसरी मां एकादशी की है। यहां मां के परम भक्त ध्यानु ने अपना शीश अर्पित किया था। ध्यानु के अनुयायी पीले वस्त्र धारण कर मंदिर पहुंचते हैं।
मां ज्वालामुखी मंदिर
कांगड़ा से करीब 30 किलोमीटर की दूरी पर मां ज्वालामुखी का मंदिर है। इनके मुख से अग्नि का प्रवाह होता है। मंदिर में अग्नि की अलग-अलग 6 लपटें हैं, जो अंजी देवी, अंबिका, विंध्यवासनी, हिंगलाज, चंडी, अन्नपूर्णा को समर्पित है। यहां मां सती की जीभ गिरी थी। अकबर ने अग्नि को बुझाने के तमाम असफल प्रयास किए। अंत में माफी मांगते हुए मां को सोने का छत्र भेंट किया, जिसे देवी ने अस्वीकार कर दिया। आज भी मंदिर परिसर में अकबर का छत्र रखा हुआ है।
मां चामुंडा देवी
कांगड़ा से मां चामुंडा देवी करीब 22 किलोमीटर है। इसे नंदीकेश्वर धाम भी कहते हैं। मां को चामुंडा पुकारे के पीछे एक कथा है। यहां मां ने चंड और मुंड नाम के दो असुरों का संहार किया था। इसी के बाद मां का नाम चामुंडा हो गया। यहां एक गुफा भी है, यहां भगवान शिव भी नंदीकेश्वर के नाम से विराजमान हैं। यहां आने वाले भक्तों को असीम शांति की अनुभूति होती है। मंदिर के पास से एक धारा भी बहती है।
मां चिंतपूर्णी देवी
ऊना जिले में स्थित मां चिंतपूर्णी भी शक्तिपीठों में से एक है। यहां मां सती के चरण गिरे थे। इस मंदिर की खोज भक्त माई दास ने की थी। मां ने उनके सपने में आकर चिंता निवारण किया था। मार्कंडेय पुराण के अनुसार जब मां चंडी ने राक्षसों का संहार किया, तो माता की सहायक योगिनियांअजया और विजया की रुधिर पिपासा को शांत करने के लिए अपना मस्तक काटकर, अपने रक्त से उनकी प्यास बुझाई। इसलिए माता का नाम छिन्नमस्तिका देवी पड़ गया।
मां नयना देवी
कांगड़ा से 136 किलो मीटर दूर मां नयना देवी का धाम है। यह हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में पड़ता है। यहां चार देवियों के दर्शन के बाद अलग से जाना होता है, जिसमें ज्यादा वक्त लगता है। यहां मां सती के दोनों नेत्र गिरे थे। यहां नयना देवी के दर्शन पिंडी रूप में होते हैं। मंदिर में पीपल का पेड़ मुख्य आकर्षण का केंद्र है, जो कि अनेको शताब्दी पुराना है। नवरात्र में यहां बड़ा मेला भी लगता है, जिसमें देश-दुनिया के व्यापारी और खरीदार आते हैं।
बैजनाथ मंदिर भी पहुंचते हैं भक्त
बैजनाथ शिव मंदिर हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में स्थित है। भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर की स्थापना के बाद से लगातार इसका निर्माण हो रहा है। मान्यता है कि त्रेता युग में रावण ने कैलाश पर्वत पर शिव के निमित्त तपस्या की। शिव के प्रकट होने पर रावण ने कहा कि मैं आपके शिवलिंग स्वरूप को लंका में स्थापित करना चाहता हूं। भगवान ने अपने शिवलिंग स्वरूप दो चिह्न रावण को देने से पहले कहा कि इन्हें जमीन पर न रखना। रास्ते में ‘गौकर्ण’ क्षेत्र (बैजनाथ) में पहुंचने पर रावण को लघुशंका का अनुभव हुआ। उसने ‘बैजु’ नाम के एक ग्वाले को सब बात समझाकर शिवलिंग पकड़ा दिए और शंका निवारण के लिए चला गया। शिवजी की माया के कारण बैजु उन शिवलिंगों के भार को अधिक देर तक न सह सका और उन्हें धरती पर रखकर अपने पशु चराने चला गया। इस तरह दोनों शिवलिंग वहीं स्थापित हो गए। जिस मंजूषा में रावण ने दोनों शिवलिंग रखे थे, उस मंजूषा के सामने जो शिवलिंग था, वह ‘चन्द्रभाल’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ और जो पीठ की ओर था, वह ‘बैजनाथ’ के नाम से जाना गया।
साभार: वरिष्ठ पत्रकार सूरज सिंह सोलंकी, सांध्य टाईम्स