-प्रधानमंत्री द्वारा गठित सचिव समूह ने की सिफारिश
प्रदीप सुरीन, नई दिल्ली
देश के सरकारी अस्पतालों में तैनात सभी डाक्टरों को अब किसी भी बीमारी के इलाज के लिए केवल जेनेरिक दवाएं (सस्ती) ही लिखनी पड़ेगी। ऐसा नहीं करने पर डॉक्टर को जुर्माने के साथ सजा भी हो सकती है। केंद्र सरकार ने जेनेरिक दवाओं को बढ़ावा देने और गरीब मरीजों को मंहगे इलाज से बचाने के लिए नाम मात्र के दिशा-निर्देशों की बजाए अब कड़ा रुख अपनाने का फैसला कर लिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा गठित सचिव समूह ने हाल ही में सौंपे अपनी सिफारिशों में इस नए प्रस्ताव को प्रमुखता से रखा है।
केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव सीके मिश्रा ने खास बातचीत में कहा ‘ मरीजों की पर्ची में जेनेरिक दवाओं को लिखने के लिए कम से कम सरकारी डाक्टरों पर कड़ाई से काम किया जा सकता है। प्रधानमंत्री को भेजे गए सिफारिशों में सचिव समूह ने जेनेरिक दवाएं नहीं लिखने पर सजा व जुर्माना लगाने का प्रस्ताव रखा है। एक बार प्रधानमंत्री से हरी झंड़ी मिलने के बाद इस नए प्रस्ताव को कानून में जोड़ दिया जाएगा। हालांकि डाक्टरों पर कितना जुर्माना या कैसी सजा होगी इस पर अभी फैसला लेना बाकी है।’ स्वास्थ्य सचिव ने आगे बताया कि नए कानून को लागू करते वक्त इस बात का भी ध्यान रखा जाएगा कि जिन बीमारियों के जेनेरिक दवा उपलब्ध नहीं हो, उनके लिए ब्रांडेड दवाएं लिखी जा सके।
जेनेरिक दवाएं सिर्फ सॉल्ट के नाम से ही बिकेंगे देश में
सचिव समूह ने अपने सिफारिशों में यह भी कहा है कि देश में बिकने वाली सभी जेनेरिक दवाएं अब सिर्फ सॉल्ट के नाम से बिकेंगी। मसलन, डायबिटीज या कैंसर की दवाओं पर निर्माता कंपनी की बजाए फॉर्मूला के नाम पर बिक्री होगी। इसके लिए मौजूदा ड्रग एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट में बदलाव किए जाएंगे। इसके अलावा पहली बार नियमों मे बदलाव करते हुए सभी जन- औषधि स्टोरों में फार्मासिस्ट डाक्टरों द्वारा लिखे ब्रांडेड दवाओं के बदले जेनेरिक दवा देने के लिए अधिकृत किए जाएंगे।
उल्लेखनीय है कि देश में किसी भी मरीज को इलाज में काफी पैसा खर्च करना पड़ता है। तेंदुल्कर कमेटी की ओर से योजना आयोग को सौंपे गए रिपोर्ट में भी कहा गया था कि देश में हर साल सिर्फ बीमारियों के इलाज करते हुए तीन फीसदी लोग गरीबी रेखा के नीचे चले जाते हैं। पिछले सालों में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने भी आम लोगों को बीमारियों से होने वाले आर्थिक बोझ से बचाने के लिए सस्ते व जेनेरिक दवाओं को उपलब्ध कराने की कोशिश कर रही है। केंद्र व राज्य सरकार कई बार डाक्टरों को मरीज की पर्ची पर जेनेरिक दवाएं लिखने की भी अपील करते आए हैं। लेकिन दवा कंपनियों और डाक्टरों की मिलीभगत होने के कारण मरीज सिर्फ मंहगी दवाएं ही खरीदने में मजबूर है।