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जीवन जीने की कला है विपश्यना

आज दुनिया के 94 देशों में खोले जा चुके हैं विपश्यना केंद्र

admin by admin
January 27, 2025
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Vipassana is teaching the art of living

राजेश कटियार, लखनऊ

अंग्रेज पत्रकार और कवि सर एडविन अर्नोल्ड का ‘लाइट ऑफ एशिया’ 1879 में प्रकाशित हुई थी। इस प्रसिद्ध रचना में गौतम बुद्ध के जीवन चरित्र का सटीक वर्णन है। बुद्ध के प्रकाश यानी उनके ज्ञान को उन्होंने केवल एशिया तक ही सीमित रखा, लेकिन उनकी पुस्तक के प्रकाशन के 90 साल बाद अब पूरब-पश्चिम , उत्तर दक्षिण, हर कहीं बुद्ध का प्रकाश अपनी दस्तक दे रहा है। उसका माध्यम है, विपश्यना।

ध्यान की इस विधि ने राजकुमार सिद्धार्थ को भगवान गौतम बुद्ध बनाया। दुनिया में आज ध्यान की तमाम विधियों के बीच पिछले पचास साल से बिना किसी प्रचार के विपश्यना लोकप्रिय हो रही है। यह जीवन जीने की कला सिखा रही है। तनाव से मुक्त कर लोगों की दक्षता और कार्यक्षमता बढ़ा रही है।

पश्यना का मतलब होता है देखना, जबकि विपश्यना का अर्थ विशेष तरह से देखना होता है। ध्यान की यह गंभीर साधना है।

पश्यना का मतलब होता है देखना, जबकि विपश्यना का अर्थ विशेष तरह से देखना होता है। ध्यान की यह गंभीर साधना है। अनुभव आधारित स्वयं की खोजपूर्ण यात्रा है जो मन व शरीर के गहरे अंतर संबंध से संबंधित है। इसकी पहली अवस्था आनापान है, जिसमें श्वास पर ध्यान रखख जाता है। इसके साथ किसी मंत्र या नाम का आलंबन नहीं किया जाता है। इस प्रक्रिया में कोई मिलावट नहीं है। प्राकृतिक रूयप से श्वास के आवागमन पर नजर रखना होता है, जिससे मन सूक्ष्म होता जाता है। सूक्ष्म का मतलब मन में विचार आने कम हो जाते हैं। तब उसके सहारे अपने शरीर को विशेष तरीके से देखना होता है। धीरे-धीरे शरीर पर होने वाली संवेदनाओं का अनुभव होता है।

इससे दैनिक जीवन में घटने वाली घटनाओं के समय मन का एक हिस्सा इन आंतरिक संवेदनाओं के प्रति सजग होना शुरू हो जाता है। इससे स्वभाव की नैसर्गिक प्रतिक्रिया पर लगाम लगने लगती है। स्वभाव में होने वाले परिवर्तन की अंतर्यात्रा को ही आध्यात्मिक यात्रा कहा जाता है। इससे शरीर में होने वाले प्रभाव को समता भाव से देखने की आदत बनती है। राग-द्वेष से परे समता का भाव जगता है। ध्यान कक्ष में न मूर्ति, न चित्र और न ही किसी प्रकार की धूप-बत्ती होती है। एक-दूसरे के संपर्क के माध्यम से ही ज्यादातर लोग विपश्यना से जुड़ते हैं। यह बिना किसी शोर-शराबे धीरे-धीरे स्थापित होने वाली एक मौन आध्यात्मिक क्रांति है, जो पूरी दुनिया में हो रही है। इसमें हर जाति, धर्म संप्रदाय के लोग जुड़ रहे हैं। ध्यान की यह साधना तमाम ऐसे अनुभव कराती है, जिसके जरिए साधक का अपने से साक्षात्कार होता है। चीजों के प्रति नजरिया बदलता है।

करीब ढाई हजार साल पहले विपश्यना के जरिए बोधि प्राप्त होने पर राजकुमार सिद्धार्थ भगवान बुद्ध कहलाए।

करीब ढाई हजार साल पहले विपश्यना के जरिए बोधि प्राप्त होने पर राजकुमार सिद्धार्थ भगवान बुद्ध कहलाए। उनके पहले भी ऋग्वेद और गीता समेत कई शास्त्रों में  विपश्यना का जिक्र है। सिद्धार्थ ने उसका तरीका खोज निकाला, जिसे अपने अनुभव से जीवन पर्यंत बांटकर लोगों का कल्याण करते रहे।

लेकिन उनके महानिर्वाण के पांच-छह सौ साल बाद यह विद्या भारत से विलुप्त हो गई, लेकिन बर्मा (अब म्यामांर) गुरु शिष्य परंपरा के तहत अब तक अपने विशुद्ध रूयप में जीवित रही।

गुरुओं की उसी कड़ी में आचार्य सयागी ऊ बा खिन से यह विद्या एसएन गोयनका ने सीखी। इन दोनों का मिलन भी दैवीय है। उस वक्त बर्मा में विशाल व्यापारिक घराने से ताल्लुक रखने वाले गोयनका युवा अवस्था में ही माइग्रेन की लाइलाज बीमारी से पीड़ित हो गए। एक मित्र की सलाह पर वह 1955 में सयागी से मिले। उनके इंटरनेशनल मेडिटेशन सेंटर में दस दिन का एक शिविर किया। उनके जीवन का धीरे-धीरे कायाकल्प हुआ, बल्कि समय के साथ बीमारी से भी छूटकारा मिला।

14 साल तक गुरु की सेवा में रहने के बाद सयागी ने 1969 में गोयनका को विपश्यना आचार्य का पद देकर भारत भेजा। यह तकरीबन वही समय था जिसकी बर्मा में मान्यता रही है कि भगवान बुद्ध के निर्वाण के ढाई हजार वर्ष बाद यह विद्या म्यामांर से अपने मूल स्थान भारत जाकर वहां से पूरी दुनिया में फैलेगी। भारत आकर गोयनका ने सबसे पहले महात्मा गांधी की पुत्रवधू के सहयोग से वर्धा के सेवाग्राम में पहला शिविर लगाया, जिसमें 15 गांधीवादी शामिल हुए। लेकिन औपचारिक रूप से पहला 10 दिवसीय शिविर 3-14 जुलाई, 1969 को मुंबई के एक धर्मशाला में लगा। उसके बाद यह सिलसिला चल निकला। उन्होंने 1976 में महाराष्ट्र के इगतपुरी में विपश्यना विश्व विद्यापीठ, धम्मागीरी की स्थापना की। तबसे पूरी दुनिया में इस ध्यान के 240 स्थायी और 141 अस्थायी केंद्रों का विस्तार हो चुका है। जहां लोग मुफ्त में ध्यान सीखते हैं।

अकेले संयुक्त राज्य अमेरिका में ही 31 स्थायी और 44 अस्थायी केंद्र हैं। एशिया में 180 स्थायी और 29 अस्थायी केंद्र हैं। भारत में 112 स्थायी और 15 अस्थायी ध्यान केंद्र हैं। इन केंद्रों में पुराने साधक एक से लेकर 60 दिन तक साधना करते हैं। नए लोगों के लिए कम से कम 10 दिन का साधना जरूरी है। इन ध्यान केंद्रों के साथ एक ग्लोबल मेडिटेशन पगोडा केंद्र मुंबई के बाहरी इलाके में है। इसका निर्माण सयागी उ बा खिन को श्रद्धांजलि देने के तौर पर किया गया है। यह दुनिया का सबसे बड़ा एक पत्थर के नीचे बना विशाल गुंबद है, जिसमें एक साथ आठ हजार लोग ध्यान कर सकते हैं। शिवालय धम्म नाम का यह पगोडा मंदिर 2009 में भक्तों के लिए खोला गया, जिसमें दुनिया भर से साधक आते हैं।

बुद्ध को मानने वाले देशों के अलावा दुबई, बहरीन, कजाकिस्तान, तुर्किए, ईरान, इंडोनेशिया और मलेशिया की जेलों में भी विपश्यना कें स्थायी केंद्र स्थापित हैं।

बहरहाल भारत आने के कुछ दिन बाद ही गोयनका की मुलाकात जानेमाने गांधीवादी आचार्य विनोबा भावे से हुई, जिनका आग्रह था कि विपश्यना का मतलब समाज के हरेक तबके के जीवन में सार्थक बदलाव होना चाहिए। अपराधियों और छात्रों के जीवन में सकारात्मक बदलाव होना चाहिए। राजस्थान में 1975 में तबके गृह सचिव रामसिंह के प्रयासों से जेल नियमावली में ढील दिलाने से यहां जेल में शिविर लगे। 1977 में भारतीय जेलों में 75 विपश्यना कोर्स के शिविर हुए। उसके बाद 1993 में देश की पहली महिला आईपीएस अधिकारी किरन बेदी ने तिहाड़ जेल की महानिरीक्षक बनीं। प्रयोगधर्मी अधिकारी की पहचान वाली बेदी इस जेल के कैदियों में सुधार के लिए कुछ नया करना चाहती थीं, विपश्यना की जानकारी पाने पर जेल के अंदर एक शिविर लगा, जिसमें 73 कैदी और 23 जेल स्टाफ ने कोर्स किया। अब यहां एक स्थायी विपश्यना केंद्र है। आज नेपाल, म्यामांर, थाईलैंड, ताइवान, ब्रिटेन, कनाडा, इजरायल, श्रीलंका, संयुक्त राज्य अमेरिका की जेलों में ऐसे शिविर लगते हैं। बुद्ध को मानने वाले देशों के अलावा दुबई, बहरीन, कजाकिस्तान, तुर्किए, ईरान, इंडोनेशिया और मलेशिया की जेलों में भी विपश्यना कें स्थायी केंद्र स्थापित हैं। देश और विदेश में कई सरकारें अपने अधिकारियों को नियमित तौर पर विपश्यना के लिए शिविरों में भेजती रही हैं। शिविर की अवधि का शुमार उनकी छुट्‌टी के तौर पर नहीं होता है।

महाराष्ट्र सरकार के एक आदेश के तहत सभी स्कूलों में छात्रों के लिए रोजाना 10 मिनट का आनापान अनिर्वाय है। विपश्यना केंद्र के आचार्य के देखरेख में यह ध्यान किया जाता है। सोशल मीडिया की बाढ़ में भी छात्र इस ध्यान से लाभांवित हो रहे हैं। उनकी एकाग्रता बढ़ रही है। विपश्यना हर एक उम्र के लिए है। छात्रों से लेकर युवाओं और बुजुर्गों तक सभी के लिए विपश्यना के शिविरों के दरवाजे खुले हैं। हाल में सारनाथ के विपश्यना केंद्र में गाजीपुर की 80 साल की एक बुजुर्ग ने अपना 10 दिवसीय शिविर सफलता पूर्वक पूरा किया। शिविरों में 20 से 40 साल की उम्र वाले करीब 60 फीसदी होते हैं। 40 से 60 की उम्र वाले करीब 25 फीसदी और 60 से ऊपर की उम्र वाले करीब 15 फीसदी साधक होते हैं। गर्मियों की छुटि्टयों के दौरान छात्रों की उपस्थिति बढ़ जाती है।

आमतौर पर ऐसे शिविरों में पुरुषों और महिलाओं का प्रतिशत 60:40 रहता है। युवाओं में आज सबसे प्रिय लेखक नोवल हरारी हैं, जो यहूदी हैं। यह साल में एक महीने मौन रहकर विपश्यना करते हैं। अपनी उपलब्धियों का श्रेय विपश्यना को देते हैं। दुनिया के 94 देशों में विपश्यना केंद्र हैं। 4 साल पहले नवंबर 2019 में म्यामांर में 10 दिन का विपश्यना शिविर पूरा करके ट्वीटर (अब एक्स के) तबके सह-संस्थापक जैक डोर्सी Jack Dorsey का ट्वीट था-

दुनिया की सबसे प्राचीनतम विपश्यना साधना, सबसे कठिन व सबसे अच्छा काम जो मैं अपने लिए करता हूं, शांति किसे नहीं चाहिए, यह विपश्यना उसका तरीका बताती है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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Tags: art of livingbuddhaBuddha from SiddharthaBuddhismmeditationSayagyi U Ba KhinSN GoenkaVipassana meditation center
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