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#Krishna भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि मथुरा-वृंदावन दुनियाभर से आते हैं श्रद्धालु

admin by admin
March 2, 2019
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buddhadarshan News, Vrindavan
भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि मथुरा-वृंदावन दुनिया भर के लोगों के लिए सदैव आकर्षण का केंद्र रहता है। दुनिया भर से श्रद्धालु यहां के मंदिरों में भगवान का दर्शन करने आते हैं। यहां पर श्रीमद् भागवत भवन, श्रीकृष्ण जन्मभूमि (कटरा केशवदेव), श्रीद्वारकाधीश मंदिर, श्री यमुना मंदिर एवं विश्रामघाट, सती बुर्ज, पोतरा कुंड, बिड़ला मंिदर, बांके बिहारी मंिदर, इस्कॉन मंदिर इत्यादि स्थित हैं।
श्रीमदभागवत भवन:
श्री कृष्ण जन्मभूमि पर एक विशाल श्रीमद् भागवत भवन का अद्वितीय निर्माण किया गया है जिसमें श्री राधा कृष्ण, श्री लक्ष्मीनारायण एवं जगन्नाथजी के विशाल मनोहर दर्शन हैं। यहाँ पारे का एक शिवलिंग अनोखा आकर्षण है। माँ दुर्गे एवं हनुमान जी की भी मूर्तियाँ स्थापित है। महामना पं. मदनमोहन मालवीय, श्री हनुमान प्रसाद जी पोद्धार एवं बिड़लाजी की आदम-कद मूर्तियाँ भी स्थापित हैं। विद्युत चालित मूर्तियों से श्री कृष्ण लीलाओं के बड़े ही सुन्दर व मनोहारी दर्शन कराए जाते हैं। श्रावण मास व भाद्रपद मास में यहाँ बड़ा भारी मेला लगता है। श्रीकृष्ण जन्म का समारोह बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है एवं रास लीलाएँ कई दिनों तक होती हैं। क्वार के महीने में यहाँ के रंगमंच पर श्री राम लीलाएँ कई दिनों तक होती हैं। क्वार के महीने में यहाँ के रंगमंच पर श्री राम लीलाएँ होता हैं। ट्रस्ट द्वारा श्रीकृष्ण संदेश नामक पत्रिका एवं अन्य ग्रन्थों का प्रकाशन भी किया जाता है।
श्रीकृष्ण जन्मभूमि (कटरा केशवदेव)-
सभी प्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ताओं द्वारा यह प्रमाणित हो गया है कि कटरा केशवदेव, राजा कंस का भवन रहा था और भगवान श्री कृष्ण का जन्म यहीं हुआ था। यही प्राचीन मथुरा बसी हुई थी। इससे पूर्व मधु नाम के राजा ने श्री मधुपुरी बसाई थी, वह आज महोली के स्थान पर थी। यही बात विदेशी यात्रियों की पुस्तकों से भी प्रमाणित होती है। यहाँ पर समय-समय पर अनेक बार भव्य मंदिरों का निर्माण होता रहा जिन्हें हर बार विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा नष्ट किया जाता रहा है। अन्त में सन् 1669 ई. में औरंगजेब ने इस प्राचीन स्मारक को तोड़कर उसी के मलबे से ईदगाह मस्जिद का निर्माण कराया जो आज भी विद्यमान है। ब्रिटिश शासनकाल में ही यह समस्त जगह बनारस के राजा पटनीमल ने खरीद ली थी ताकि यहाँ फिर से श्रीकृष्ण मंदिर का निर्माण हो सके। महामना पंडित मदन मोहन मालवीय एवं श्री जे.के. बिड़ला के प्रयत्नों से एक श्री कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट बनाया गया जिसने अब यहाँ एक विशाल मंदिर का निर्माण कराया है। यहाँ आयुर्वेदिक औषधालय. पाठशाला, पुस्तकालय एवं भोजनालय और यात्रियों के ठहरने के लिए विशाल अतिथि गृह का निर्माण हो चुका है।
श्रीद्वारकाधीश मंदिर-
श्री केशवराम मन्दिर (कटरा केशवदेव) के सन् 1669 ई. में नष्ट हो जाने के बाद गुजराती वैश्य श्री गोकुलदास पारिख ने इस मंदिर का निर्माण कराके इस कमी को पूरा किया। असकुण्डा घाट के समीप बाज़ार में स्थित इस विशाल मंदिर का निर्माण सन् 1814-15 ई. के लगभग हुआ। इस मंदिर की व्यवस्था के लिए अचल सम्पति संलग्न है ताकि उसके किराये से मंदिर की सुचारु रुप से व्यवस्था होती रहे। इसकी सेवा-पूजा का करौली के पुष्टिमार्गीय गोसाईंयों द्वारा होती है। प्रसाद मंदिर में अपनी पाकशाला में तैयार होता है।
मन्दिर १०८ फीट लम्बी और १२० फीट चौड़ी कुर्सी पर स्थित है। स्थापत्य कला की दृष्टि से भी मंदिर का पर्याप्त महत्व है। कलात्मक भव्य विशाल द्वार के बाहर अनेक दूकाने हैं। अन्दर अनेक सुदृढ़ एवं कलात्मक स्तम्भों पर मध्य में विशाल मण्डप है जिसमें बहुरंगी कलाकृतियों एवं शीशे का काम देखने योग्य है। श्री द्वारिकानाथ की सुन्दर एवं आकर्षक चतुर्भुजी पद्म आयुध विद्यमान हैं। बाई ओर श्वेत स्फटिक की रुक्मिणीजी की सुन्दर प्रतिमा है।
यहाँ सावन में हिंडोले का उत्सव होता है, घटाओं के अति सुन्दर दर्शन होते हैं। जन्माष्टमी, होली, अन्नकूट आदि प्रमुख उत्सव हैं। श्री द्वारिकानाथजी की एक दिन में आठ बार झाँकियाँ होती हैं। चार बार प्रात:- मंगला, श्रृंगार, ग्वाल एवं राजभोग तथा चार बार सायं- उत्थान, भोग, संख्या आरती एवं शयन। मंगला आरती की झाँकी ६.३० बजे होती है तथा शयन के दर्शन ग्रीष्मकाल में ७ बजे तक और शीतकाल में ६.३० बजे तक खुले रहते हैं।
श्रीयमुना मंदिर एवं विश्राम घाट-
यह प्रमुख घाट नगरी के लगभग मध्य में स्थित है। इस घाट के उत्तर में १२ और दक्षिण में भी १२ घाट हैं। इस पर यमुनाजी का मन्दिर तथा आस-पास अन्य मन्दिर भी हैं। सायंकाल यमुनाजी की आरती का दृश्य मनोहारी होता है। ओरछा के राजा वीरासिंह देव ने इसी घाट पर ८१ मन सोने का दान किया था। जयपुर, रीवा, काशी आदि के राजाओं ने भी बाद में यहाँ स्वर्ण दान किए थे। कहा जाता है कि श्रीकृष्ण-बलराम ने कंस का संहार करने के बाद यहीं विश्राम लिया था। चैत सुदी छठ को श्री यमुनाजी का जन्मोत्सव होता है तथा यमद्वितीया के दिन लाखों यात्री दूर-दूर से आकर यहाँ स्नान करते हैं। कहा जाता है कि अपने भाई यम से श्री यमुना महारानी ने इसी दिन तिलक करके वरदान लिया था कि जो भाई-बहिन इस दिन यहाँ स्नान करेंगे, वह यमलोक गमन नहीं करेंगे। इस घाट पर स्नान करने के बाद भाई अपनी बहन को उपहार स्वरुप वस्रादी भेंट करते है।
सती बुर्ज- सन् १५७० ई. में राजा भगवानदास ने इस बुर्ज का उस स्थान पर निर्माण कराया था, जहाँ उनकी माँ राजा बिहारीमल की रानी सती हुई थीं। ५५ फीट ऊँचा यह चौखण्ड बुर्ज लाल पत्थर का बना विश्राम घाट के पास है।
पोतरा कुंड-
रीकृष्ण जन्मभूमि के पीछे पोतरा कुण्ड नामक एक प्राचीन विशाल तथा गहरा कुण्ड है जिसके बारे में कहा गया है कि यहाँ श्री कृष्ण के जन्म के समय उनके वस्र उप-वस्रों को धोया गया था। कुछ भी हो, यह कुण्ड वास्तव में बहुत ही महत्वपूर्ण है। हो सकता है, इसके जल से नगर की जलापूर्ति होती हो। यह कुण्ड इस समय सूखा पड़ा है। इसका जीणोद्धार कुछ समय पहले ही हुआ है।
बिड़ला मंदिर-
ह मथुरा शहर से बाहर मथुरा वृन्दावन सड़क पर बिड़ला द्वारा बनवाया गया है। मन्दिर में पंञ्चजन्य शंख एवं सुदर्शन चक्र लिए हुए श्री कृष्ण भगवान, सीताराम एवं लक्ष्मीनारायणजी की मूर्तियाँ बड़ी मनोहारी हैं। दीवारों पर चित्र एवं उपदेशों की रचना दर्शकों का मन मोह लेती हैं। एक स्तंभ पर सम्पूर्ण श्रीमद् भगवद्गीता लिखी हुई है तथा स्थान-स्थान पर मूर्तियों आदि से सुसज्जित मन्दिर यात्रियों को भक्ति रस-विभोर कर देता है। समीप ही बिड़ला धर्मशाला भी है।
तीन मंदिरों में मनाई जाती है दिन में जन्माष्टमी-
तीन लोक से न्यारी मथुरा नगरी की सांस्कृतिक राजधानी वृन्दावन में अनूठी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाती है। यहां के तीन मंदिरों में जहां दिन में जन्माष्टमी मनाई जाती है वहीं यहां के शेष मंदिरों में रात में जन्माष्टमी मनाई जाती है।
राधारमण मंदिर, राधा दामोदर एवं शाहजी मंदिर और यहां तक बांके बिहारी मंदिर में ठाकुर का पूजन अर्चन बालस्वरूप में किया जाता है। इसलिए मंदिर की सभी व्यवस्थाएं इस प्रकार की होती हैं कि लाला को किसी प्रकार की परेशानी न हो। इसके कारण ही यहां के राधारमण, राधा दामोदर एवं शाहजी मंदिर में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी दिन में मनाई जाती है जब कि बाल स्वरूप में सेवा होने के बावजूद बांकेबिहारी मंदिर में मंगला के दर्शन आधी रात बाद होते हैं।
बांके बिहारी मंदिर-
यहा के प्रबंध समिति के उपाध्यक्ष रजत गोस्वामी ने आज यहां बताया कि मंदिर में मंगला के दर्शन आधी रात बाद इसलिए होते हैं कि स्वामी हरिदास की डाली परंपरा के अनुसार रात 12 बजे अभिषेक होता है और उसके बाद ही बिहारी जी महाराज का अभिषेक होता है।
श्री गोस्वामी ने बताया कि अभिषेक के बाद मंगला के दर्शन की परंपरा को स्वामी हरिदास ने ही प्रारंभ किया था तथा वर्तमान में गोस्वामी समाज मंदिर की सेवा पूजा में उसी परंपरा का निर्वहन करता है।
यहां दिन में मनाई जाती है जन्माष्टमी-
बालस्वरूप में सेवा होने के कारण वृन्दावन के तीन मंदिरों राधारमण, राधा दामोदर एवं शाह जी मंदिर में दिन में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाती है। वृन्दावन के प्राचीन राधारमण मंदिर के सेवायत आचार्य दिनेश चन्द्र गोस्वामी ने बताया कि श्रीकृष्ण का अवतरण तो आज से लगभग सवा पांच हजार वर्ष पहले ही हो गया था।
उन्होंने बताया कि श्रीकृष्ण जन्माष्टमी एक प्रकार से श्रीकृष्ण के जन्म का साल गिरह है। जिस प्रकार बच्चे की साल गिरह पर उसे अच्छे से अच्छे कपड़े पहनाए जाते हैं तथा अच्छा भोजन और पकवान बनाया जाता है उसी प्रकार श्रीकृष्ण जन्म पर मंदिर को सजाने और नाना प्रकार के व्यंजन का भोग लगाने की परंपरा सैकड़ों साल से चली आ रही है और खुशहाल अवस्था में दिन में जन्माष्टमी मनाई जाती है।
ऐसे होता है अभिषेक:
आचार्य गोस्वामी जी ने बताया कि श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर सबसे पहले अभिषेक में भाग लेने वाले गोस्वामी संकीर्तन के मध्य यमुना जल लेकर आते हैं तथा पट खुलते ही अभिषेक शुरू हो जाता है । सबसे पहले ठाकुर का यमुना जल से अभिषेक करते हैं इसके बाद 27 मन दूध, दही, घी, बूरा, शहद, औषधियों, सर्वोषधियों, महौषधियों, फूल फल एवं अष्ट कलश से तीन घंटे से अधिक देर तक घंटे घडियाल एवं शंखध्वनि के मध्य अभिषेक किया जाता है।
उन्होंने बताया कि सबसे अंत में स्वर्ण पात्र में केसर घोलकर ठाकुर का उससे अभिषेक किया जाता है। इसके बाद मंदिर के गर्भ गृह पर पर्दा डालकर अंदर ठाकुर का श्रंगार करते हैं। बालस्वरूप में सेवा होने के कारण पुनः जब दर्शन खुलते हैं तो सारे कार्यक्रम इस प्रकार चलते हैं जैसे लाला का जन्म आज ही हुआ हो।

श्री गोस्वामी ने बताया कि ठाकुरजी को पहले यज्ञोपवीत धारण कराया जाता है इसके बाद उन्हें माला धारण कराई जाती है। उसके बाद ठाकुर को न केवल काजल लगाया जाता है बल्कि राई नोन से उनकी नजर भी उतारते हैं। इसके बाद गेास्वामी वर्ग लाला की दीर्घ आयु के लिए उन्हें आशीर्वाद देता है।

(साभार-http://anoop-mishra.blogspot.in/2016/08/blog-post_61.html)

Tags: dwarkadhish templeShrikrishna JanmbhumiShriyamuna MandirtempleVishram GhatVrindavan
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