buddhadarshan News, New Delhi
अपने साहस, शौर्य, सूझ-बूझ से मुगल (mughal) सम्राज्य empire की चूलें हिला देने वाली गोंडवाना Gondwana साम्राज्य Empire की वीरांगना Veerangna रानी दुर्गावती के नाम पर भारत सरकार india govt जल्द ही डाक टिकट Daak Ticket जारी करेगी। केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्यमंत्री अनुप्रिया पटेल Anupriya Patel ने इस बाबत केंद्रीय संचार राज्यमंत्री (संचार प्रभार) एवं रेल राज्यमंत्री मनोज सिन्हा Manoj Sinha को पत्र लिख कर डाक टिकट जारी करने की अपील की हैं। उन्होंने पत्र में लिखा है कि वीरांगना रानी दुर्गावती के तेज, शौर्य, साहस एवं बलिदान Sacrifice को सदैव अमर एवं यादगार बनाने हेतु उनके नाम पर डाक टिकट जारी करने की कृपा कर अनुग्रहित करें।
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केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल का कहना है कि गोंड आदिवासी समाज सहित पूरा देश वीरांगना रानी दुर्गावती के प्रति असीम श्रद्धा का भाव रखता है। हर वर्ष उनकी जयंती पर उनका स्मरण करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि अपर्ति करता है। गोंड समाज की भावनाएं उनसे जुड़ी हैं।
बांदा के कालिंजर में पैदा हुईं रानी दुर्गावती:
बता दें कि रानी दुर्गावती का जन्म 5 अक्टूबर 1524 ई को बांदा जिले के कालिंजर के राजा कीर्ति सिंह चंदेल के यहां हुआ था। वे अपने पिता की एक मात्र संतान थीं। दुर्गाष्टमी के दिन पैदा होने के कारण उनका नाम दुर्गावती रखा गया। नाम के अनुरुप ही तेज, साहस, शौर्य और सुंदरता के कारण इनकी प्रसिद्धि चारों ओर फैल गई। दुर्गावती की प्रसिद्धि से प्रभावित होकर गोंडवाना साम्राज्य के राजा संग्राम शाह मडावी ने अपने पुत्र दलपत शाह मडावी से विवाह करके उन्हें अपनी पुत्रवधू बनाया।
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पति की मौत के बाद 3 वर्षीय बेटे को गद्दी पर बिठाया:
दुर्भाग्यवश विवाह के चार वर्ष बाद ही राजा दलपतशाह का निधन हो गया। ऐसे दु:खद समय में अपनी सूझ-बूझ, साहस एवं संयम के दम पर रानी दुर्गावती ने अपने तीन वर्षीय पुत्र वीरनारायण को सिंघासन पर बैठाकर संरक्षक के रूप में स्वयं शासन करना प्रारम्भ किया। रानी ने प्रजा के हित को ध्यान में रखते हुए अनेकों मठ, कुएं, बावड़ी और धर्मशाला आदि का निर्माण कराया। वे वीर और साहसी होने के साथ ही ममता की मूर्ति थीं।
रानी दुर्गावती ने अपने अदम्य साहस और रणनीतिक कौशल के दम पर बहादुर शाह और मुगल शासक अकबर की सेनाओं को कई बार परास्त किया। आसफ खां के नेतृत्व में अकबर ने गोंडवाना पर हमला करा दिया। कम सैनिक होने के बाद भी रानी दुर्गावती जबलपुर के पास नरई नाले के किनारे पुरुष वेश धारण कर मुगलों की सेना का सामना किया, जिसमें रानी ने अपने शौर्य के बल पर 3000 मुगल सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया।
मुगलों की कैद के बजाय शहीद होना बेहतर समझा:
मुगल सेना ने भारी तादाद में सैनिकों के साथ 24 अक्टूबर 1564 को रानी पर हमला किया। कम सैनिक होने के बावजूद रानी ने डटकर मुकाबला किया। बुरी तरह से घायल होने और सुरक्षित बचने का कोई रास्ता न दिखायी देने पर रानी ने अपनी आन-बान-शान और मर्यादा की रक्षा के लिए स्वयं ही अपनी कटार से अपने धड़ को अलग कर आत्म बलिदान के पथ पर बढ़ गईं।